रुद्राक्ष, भगवान शिव का दिव्य वरदान, न केवल हमारी आत्मिक यात्रा को संजीवनी शक्ति प्रदान करता है, बल्कि यह हमारे जीवन को शांति, समृद्धि और संतुलन से भर देता है। यह रहस्यमयी बीज हमें भगवान शिव के आशीर्वाद से जोड़ता है, जिससे न केवल मानसिक तनाव कम होता है, बल्कि जीवन में सकारात्मक बदलाव की लहर भी आती है। हम सभी के लिए यह एक अनमोल उपहार है—चाहे आप आध्यात्मिक शांति की खोज में हों या जीवन में एक नई ऊर्जा का अहसास करना चाहते हों।
रुद्राक्ष की महिमा, न केवल आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण और सशक्त है। यह एक ऐसा दिव्य उपहार है जो शारीरिक, मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य को समृद्ध करने में मदद करता है। आइए जानते हैं रुद्राक्ष के आध्यात्मिक और वैज्ञानिक पहलुओं के बारे में:
रुद्राक्ष, भगवान शिव के साथ जुड़ा हुआ एक पवित्र बीज है, जिसे भगवान शिव का आशीर्वाद माना जाता है। यह आध्यात्मिक उन्नति, शांति और ऊर्जा का प्रतीक है। रुद्राक्ष को पहनने से व्यक्ति के मानसिक और आत्मिक शुद्धि होती है, जिससे आध्यात्मिक जागृति की दिशा में प्रगति होती है। यह ध्यान और साधना के दौरान एक दिव्य सहायक बनता है, और ध्यान की गहरी अवस्था में व्यक्ति को आसानी से प्रवेश करने में मदद करता है।
वैज्ञानिक रूप से रुद्राक्ष का प्रभाव शरीर और मस्तिष्क पर गहरा होता है। रुद्राक्ष के बीज में विशिष्ट इलेक्ट्रोमैग्नेटिक गुण होते हैं, जो शरीर के विद्युत आवेश को संतुलित करने में मदद करते हैं। इसके परिणामस्वरूप व्यक्ति को मानसिक शांति, ध्यान में सुधार और शारीरिक ऊर्जा में वृद्धि का अनुभव होता है। कई शोधों से यह भी पाया गया है कि रुद्राक्ष को पहनने से रक्तचाप नियंत्रित रहता है और शरीर में ऊर्जा का संचार होता है।
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एक मुख वाले रुद्राक्ष को परब्रह्म माना जाता है। इसे साक्षात् भगवान शिव का ही रूप माना जाता है, इसमें भगवान शिव खुद ही विराजते हैं। एक मुखी रुद्राक्ष के विषय में कहा गया है कि इसके दर्शन मात्र से ही मानव का कल्याण हो जाता है, तो पूजन अथवा धारण से क्या नहीं हो सकता होग ? यह ब्रह्म-हत्या जैसे महापाप को नष्ट करता है। जिस घर में यह होता है उस घर में लक्ष्मी विशेष रूप से विराजमान होती हैं। यह धारणकर्ता को सभी तरह के नुकसान तथा डर से दूर रखता है। जिसके साथ भगवान शिव खुद ही रहते हों उसे भला क्या प्राप्त नहीं हो सकता है। एक मुख वाला रुद्राक्ष सर्वोत्तम, सर्वमनोकामना सिद्धि, फलदायक और मोक्षदाता है। इसे सभी रुद्राक्षों में सबसे ज्यादा फल देने वाला माना गया है। इसे धारण करने से सभी तरह के अनिष्ट दूर हो जाते हैं, चाहे वह परिस्थितिवश हों या दुश्मन-जनित। एक मुखी रुद्राक्ष को पूजने से मनवांछित फल प्राप्त होता है। गले में अथवा पूजन में एक मुख वाला रुद्राक्ष धारण करने से अवश्य ही पुण्य उदय होता है। एक मुख वाला रुद्राक्ष मानसिक शान्ति देकर मानव के समस्त पाप तथा संकट हर लेता है इसमें कोई शक नहीं है तथा यह प्रमाणित है।
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यह रुद्राक्ष अर्ध-नारीश्वर स्वरूप है, यह शिव और शक्ति का रूप है। इसे पहनने से भगवान शिव और माता पार्वती दोनों ही खुश होते हैं। दो मुखी रुद्राक्ष गोहत्या के पाप से मुक्ति दिलाता है और यह दिमाग को सन्तुलित रखता है। इसको पहनने से मनुष्य की बुद्धि जाग्रत होती है और घर में हर तरह की सुख-सुविधा उपलब्ध होती है। इसको पहनने से पति-पत्नी में एकात्मय भाव पैदा होता है। यह रुद्राक्ष श्रद्धा तथा विश्वास का स्वरूप है। यह व्यापार-कार्य में सफलता दिलाता है। दो मुख वाला रुद्राक्ष सांसारिक समृद्धि की प्राप्ति कराता है और घर से क्लेश-कारण तो हमेशा-हमेशा के लिए ही खत्म करता है।
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तीन मुख वाले रुद्राक्ष को अग्नि स्वरूप माना जाता है। यह सत्य, रज तथा तम, इन तीनों का निगुणात्मक शक्ति रूप है। इस रुद्राक्ष में ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों शक्तियों का समावेश तो है ही, इसके साथ-साथ इसमें तीनों लोक-आकाश, पृथ्वी, पाताल की भी शक्तियाँ निहित होती हैं। यह मानव को त्रिकालदर्शी बनाकर भूत, इसको धारण करने से व्यक्ति की विध्वंसात्मक प्रवृत्तियों का ह्रास होता है तथा रचनात्मक प्रवृत्ति पैदा होती है, इसीलिये यह अध्ययन कार्य में मददगार है। जो विद्यार्थी पढ़ने में कमजोर हों वह इसे धारण करके अद्भुत लाभ उठा सकते हैं। इसको धारण करने से इष्ट देव खुश होते हैं तथा इसको धारण करने से मन में दया, धर्म, परोपकार के भाव पैदा होते हैं। यह पर-स्त्री गमन के पापों को नष्ट करता है। यह धारक या पूजक के सभी पापों का नाश कर उसे तेजस्वी बनाता है।
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चार मुख वाले रुद्राक्ष में चार धारियाँ होती हैं। चार मुख वाला रुद्राक्ष चतुर्मुख ब्रह्मा का स्वरूप माना गया है। चार वेदों का रूप माना गया है। यह मनुष्य को काम, अर्थ, धर्म, मोक्ष चतुर्वर्ग देने वाला है। यह चारों वर्ण- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र तथा चारों आश्रम - ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा संन्यास के माध्यम से पूजित तथा परम वन्दनीय है। इसको पहनने वाला धनाढ्य, अरोग्यवान तथा ज्ञानवान बन जाता है। चार मुख वाला रुद्राक्ष वृद्धिदाता है। जिस बालक की बुद्धि पढ़ने में कमजोर हो अथवा बोलने में अटकता हो उसके लिये भी यह सर्वोत्तम है। चार मुख वाला रुद्राक्ष धारण करने से मानसिक रोगों में शान्ति मिलती है तथा पहनने वाले का स्वास्थ्य भी ठीक रहता है। अग्नि पुराण में इसके विषय में लिखा है कि इसको धारण करने से व्याभिचारी भी ब्रह्मचारी तथा नास्तिक भी आस्तिक हो जाता है। चार मुख वाले रुद्राक्ष सबसे श्रेष्ठ नेपाल का होता है तथा नेपाली चार मुख वाला रुद्राक्ष आसानी से प्राप्त भी हो जाता है।
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पांच मुख वाला रुद्राक्ष साक्षात् रुद्र स्वरूप है इसे कलाग्नि के नाम से जाना जाता है, रुधोजात्, तत्पुरुष, ईशान, अघोर तथा कामदेव शिव के ये पाँचों रूप पाँच मुख वाले रुद्राक्ष में वास करते हैं। पाँच मुख वाले रुद्राक्ष को पंचमुख ब्रह्मा स्वरूप माना जाता है, इनके पाँच मुखों को भगवान शिव का पंचानन स्वरूप माना गया है। मानव इस संसार में जो भी ज्ञान रूपी सम्पत्ति प्राप्त करता है वह सुस्पष्ट तथा स्थायी हो तभी उसकी सार्थकता है, इस तरह के ज्ञान की रक्षा हेतु पाँच मुख वाला रुद्राक्ष विशेष उपयोगी है। यह मनुष्य को उन्नति के रास्ते पर चलने की ताकत देता है तथा उन्हें आध्यात्मिक सुख की प्राप्ति कराता है। पाँच मुख वाला रुद्राक्ष कालाग्नि रुद्र का प्रतीक माना जाता है। यह पर-स्त्री गमन के पाप को हरता है तथा इसे धारण करने से सभी तरह के पाप नष्ट हो जाते हैं। इसके धारक को किसी तरह का दुःख नहीं सताता। इसके गुण अन्तत हैं, इसलिये इसे अत्यधिक फलदायक तथा महिमामय माना जाता है। पाँच मुख वाले रुद्राक्ष के कम से कम तीन अथवा पाँच दाने धारण करने चाहियें |
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छः मुख वाला रुद्राक्ष शिवजी के पुत्र कुमार कार्तिकेय की शक्ति का केन्द्र बिन्दु है। यह विद्या, ज्ञान, बुद्धि को देने वाला है। छः मुख वाला रुद्राक्ष पढ़ने वाले छात्रों, बौद्धिक कार्य करने वालों को बल देने वाला है। यह विद्या अध्ययन में अद्भुत शक्ति देता है। छः मुख वाले रुद्राक्ष के विषय में कहा जाता है कि यह छह तरह की बुराइयों काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर, मद को जड़ से खत्म करता है। इसके पहनने से मनुष्य की खोई हुयी शक्तियाँ जाग्रत होती हैं, स्मरण शक्ति प्रबल होती है तथा बुद्धि का विकास बहुत तेज गति से होता है। यह धारक को आत्म-शक्ति, संकल्प-शक्ति, ज्ञान-शक्ति, अध्ययन-शक्ति, रोगों से लड़ने की ताकत भी देता है। इसको पहनने से मनुष्य वाक्पटु बनता है। इसे पहनने से हृदय की दुर्बलता, चर्म रोग और नेत्र रोग दूर होते हैं। यह दरिद्रता का नाश करता है। छः मुख वाला रुद्राक्ष पहनने से व्यक्ति शिक्षा, काव्य, छंद, व्याकरण, ज्योतिषाचार्य, चारों वेद, रामायण तथा महाभारत इत्यादि ग्रन्थों का विद्वान् हो सकता है। इसके पहनने से सुख-सुविधा भी जरूर ही मिलती है
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सात मुख वाला रुद्राक्ष सप्त ऋषियों का स्वरूप है। ऋषिजन हमेशा संसार के कल्याण में कार्यरत् रहते हैं, इस प्रकार से सात मुख वाले रुद्राक्ष पहनने मात्र से ही सप्त ऋषियों का सदा आशीर्वाद रहता है, जिससे मनुष्य का सदा कल्याण होता है। इसके साथ ही यह सात माताओं ब्राह्मणी, माहेश्वरी कौमारी, वैष्णवी, इन्द्राणी, चामुण्डा का मिला-जुला रूप भी है। इन माताओं के प्रभाव से यह पूर्ण ओज, तेज, ज्ञान, बल तथा सुरक्षा प्रदान करके आर्थिक, शारीरिक तथा मानसिक परेशानियों को दूर करता है। यह उन सात आवरणों का भी दोष मिटाता है जिससे मानव शरीर निर्मित होता है, यथा- पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश, महत्त्व तथा अहंकार। सात मुख वाला रुद्राक्ष धन-सम्पत्ति, कीर्ति तथा विजयश्री प्रदान करने वाला होता है। इसको धारण करने से धनागम बना रहता है, साथ ही व्यापार, नौकरी में भी उन्नति होती है। यह रुद्राक्ष सात शक्तिशाली नागों का भी प्रिय है। सात मुखी रुद्राक्ष साक्षात् अनंग स्वरूप है, अनंग को कामदेव के नाम से भी जाना जाता है, इसलिये इसको पहनने से मनुष्य स्त्रियों के आकर्षण का केन्द्र बना रहता है और पूर्ण स्त्री-सुख मिलता है। इसको पहनने से स्वर्ण चोरी के पाप से मुक्ति मिलती है।
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अष्टमुखी रुद्राक्ष गणेश भगवान स्वरूप है। भगवान गणेश सभी देवों में प्रथम पूज्य हैं। आठ मुख वाले रुद्राक्ष को अष्टमूर्ति (पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश, सूर्य, चन्द्र और यजमान) रूप साक्षात् शिव शरीर माना जाता है। मानव-भगवान तमी बनायी आठ प्रकृति (भूमि, आकाश, जल, अग्नि, वायु, मन, बुद्धि, अहंकार) के अधीन रहता है। आठ मुख वाला रुद्राक्ष धारण करने से आठों प्रवृत्तियाँ मदद करती हैं, जिससे आठों दिशाओं में विजय प्राप्त होती है। जिस तरह से सात मुख वाला रुद्राक्ष पहनने वालों की रक्षा सात मातायें करती हैं, उसी तरह से आठ मुख वाले रुद्राक्ष पहनने से आठ देवियाँ रक्षा करती हैं। इसको पहनने से गणेश भगवान की कृपा बनी रहती है, जिससे लेखन-कला ऋद्धि-सिद्धि आदि की प्राप्ति होती है तथा दुर्घटनाओं व शत्रुओं से रक्षा होती है, प्रेत बाधा का डर नहीं रहता। यह साहस तथा शक्ति प्रदान करता है। आठ मुख वाले रुद्राक्ष को भैरव भगवान का स्वरूप भी माना जाता है। इसके बारे में मान्यता है कि इसको पहनने से कोर्ट-कचहरी के मामलों में असफलता का मुँह नहीं देखना पड़ता तथा दैविक, दैहिक एवं भौतिक कष्टों का निवारण हो जाता है। आठ मुख वाला रुद्राक्ष पहनने से अन्न, धन तथा स्वर्ण की वृद्धि होती है। दुष्ट स्त्री, गुरु-पत्नी गमन के पापों से मुक्ति मिलती है तथा यह मनुष्य को अन्तर्मुखी बनाकर उसके जीवन की समस्त उथल-पुथल खत्म कर नीचे से ऊपर उठने का रास्ता भी दिखाता है।
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नौ मुख वाले रुद्राक्ष को नवशक्ति सम्पन्न माना जाता है। दुर्गा जी के सभी नव-अवतारों की पूर्ण शक्तियाँ इसमें समायी होती हैं, इसलिये यह पहनने वाले को अलौकिक-दिव्य शक्तियाँ भी देता है। नौ मुख वाले रुद्राक्ष में नौ तीर्थों-पशुपतिनाथ, केदारनाथ, सोमनाथ, बद्रीनाथ, विश्वनाथ, जगन्नाथ, पारसनाथ व वैद्यनाथ के दर्शन पुण्य होते हैं। वैसे तो सभी रुद्राक्ष शिव-शक्ति के रूप हैं, किन्तु नौ मुख वाले रुद्राक्ष देवी माता के उपासकों के लिये विशेष हितकर होता है, इसको धारण करने से वीरता, धीरता, साहस, कर्मठता, पराक्रम, सहनशीलता तथा यश की वृद्धि होती है। यह रुद्राक्ष पहनने वाले को नवरात्रों के व्रत के समान पुण्य देता है तथा पति-पत्नी, पिता-पुत्र के मतभेदों को दूर कर तन-मन से सदा पवित्र रखता है। नौ मुख वाला रुद्राक्ष के देवता भैरव व यमराज हैं। इसको धारण करने से यमराज का भय नहीं रहता है तथा इसको पहनने वाला सदा सबका हित चिंतक होता है। यह पहनने वाले के पक्ष में निर्णय करवाता है। यह भ्रूण हत्या के पाप से मुक्ति प्रदान करता है तथा माँ की भक्ति में रुचि को बनाये रखता है, जिससे मानव सद्गति को प्राप्त होता है।
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दस मुख वाला रुद्राक्ष भगवान विष्णु स्वरूप है, इसे दशावतार - मत्स्य, राम, कृष्ण, कच्छप, नृसिंह, वाराह, वामन, परशुराम, बुद्ध तथा कल्कि के स्वरूप का प्रतीक रुपना जाता है। इसे पहनने से ये दसों देवता बहुत खुश होकर पहनने "वालों को अनेक प्रकार की दिव्य शक्तियाँ प्रदान करते हैं। इसको पहनने से दसों दिशाओं तथा दस दिक्पाल - अग्नि, यम, कुबेर, इन्द्र, निऋति, वरुण, वायु, ईशान, अनन्त तथा ब्रह्मा सन्तुष्ट रहते हैं। दस मुख वाला रुद्राक्ष पहनने से दसों दिशाओं में कीर्ति फैलती है तथा दसों इन्द्रियों के माध्यम से किये गये समस्त पाप भी खत्म हो जाते हैं। दस मुख वाला रुद्राक्ष पहनने वालों पर किसी ग्रह का आधिपत्य नहीं रहता है। दस मुख वाले रुद्राक्ष पहनने से लोक-सम्मान मिलता है, राजसी कार्यों में सफलता मिलती है, कीर्ति विभूति तथा धन की प्राप्ति होती है तथा धारणकर्ता की सभी लौकिक तथा पारलौकिक इच्छा भी पूरी होती हैं। भूत, पिशाच, राक्षस, बेताल इत्यादि का डर समाप्त हो जाता है। जिस प्रकार एक मुख वाला रुद्राक्ष सम्पूर्ण शिव स्वरूप है उसी प्रकार दस मुख वाला रुद्राक्ष सम्पूर्ण विष्णु स्वरूप है। इसी कारण यह नेताओं, समाज-सेवियों तथा कलाकारों हेतु भी उत्तम माना जाता है।
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ग्यारह मुख वाला रुद्राक्ष भी रुद्र स्वरूप है, यह भगवान शंकर के भक्तों हेतु बहुत ही शुभकारी एवं अमोघ वस्तु है। शिवजी के ग्यारहवें रुद्र महावीर बजरंगबली हैं, जिनके नाम से ही भूत-प्रेत भागते हैं। वह गुणवान, विद्यावान तथा चतुरता प्रदान करने वाले देवता हैं। ग्यारह मुख वाला रुद्राक्ष बल, बुद्धि तथा शरीर को बलिष्ठ एवं निरोगी बनाता है। भगवान इन्द्र भी इसके देवता माने जाते हैं, अगर किसी मनुष्य की कुछ दान करने की इच्छा हो और वह दान न कर पाया हो तो ग्यारह मुख वाले रुद्राक्ष को धारण करे, इससे दान की पूर्ति हो जाती है। इसके बारे में यह कहा गया है कि इसे पहनने मात्र से ही सहस्त्र अश्वमेघ यज्ञ तथा एक लाख गाय दान करने के बराबर पुण्य फल प्राप्त होता है। जिनके जीवन में सदा संघर्ष बना रहता हो, इसको पहनने से सांसारिक समृद्धि तथा उसके भोगने का सुख प्राप्त होता है। इसको पहनने से एकादशी व्रत का पुण्य हमेशा ही प्राप्त होता है तथा मनुष्य हमेशा विजयी रहता है। स्त्रियों हेतु यह रुद्राक्ष सबसे ज्यादा शुभकारी है। पति की सुरक्षा, उसकी लम्बी आ व उन्नति तथा सौभाग्य प्राप्ति में यह रुद्राक्ष अत्यन्त शुभ है।
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बारह मुख वाला रुद्राक्ष भगवान सूर्य के बारह रूपों के ओज, तेज तथा शक्ति सामर्थ्य का केन्द्र बिन्दु है। भगवान सूर्य संसार को चलाने वाले देवता हैं। सम्पूर्ण पृथ्वी सूर्य भगवान की कृपा पर निर्भर है, पृथ्वी के सभी प्राणियों के प्राण-रक्षक सूर्य भगवान हैं। जिस तरह सूर्य का प्रकाश सारे संसार को अपनी रोशनी देकर सारे संसार को ज्योर्तिमय बना देता है ठीक उसी तरह से बारह मुख वाला रुद्राक्ष भी मनुष्य को उन्नति का रास्ता दिखाकर उसका जीवन उन्नतशील बना देता है। बारह मुख वाला रुद्राक्ष बारह ज्योर्तिलिंगों महाकाल, सोमनाथ, रामेश्वरम्, ओंकारेश्वर, मल्लिकार्जुन, भीमशंकर, वैद्यनाथ, नागेश्वर, त्रयम्बकेश्वर, विश्वेश्वर, केदारेश्वर, तथा घुरूमेश्वर का प्रतीक माना जाता है। इसको पहनने वाला व्यक्ति कभी रोग, चिन्ता, डर, भ्रम से परेशान नहीं होता है। धन, वैभव, ज्ञान तथा दूसरे भौतिक सुखों का प्रदाता यह रुद्राक्ष अद्भुत रूप से सुख देने वाला होता है। इसको धारण करने से बारह आदित्य प्रसन्न होते हैं। महामंत्र "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" का जप करने से जो फल मिलता है, वह बारह मुख वाले रुद्राक्ष के पहनने से स्वतः ही प्राप्त होता है। इसको धारण करने से हमेशा चेहरे पर खुशी, समाज में मान-सम्मान तथा वाणी में चातुर्यता उत्पन्न होती है। बारह मुख वाला रुद्राक्ष बहुत शक्तिशाली तथा तेजस्वी रुद्राक्ष होता है। बारह मुख वाला रुद्राक्ष धारण करने से मनुष्य को शासक का पद प्राप्त होता है, यह शादी-विवाह सम्बन्धों की विवशताओं को दूर करता है। इसको पहनने से शारीरिक एवं मानसिक पीड़ा मिट जाती है और जीवन निरोगी तथा सुखी व्यतीत होता है
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तेरह मुख वाला रुद्राक्ष भगवान इन्द्र का स्वरूप माना जाता है। इसके पहनने मात्र से इन्द्र प्रसन्न होते हैं, जिससे समृद्धि की प्राप्ति होती है। यह रुद्राक्ष सभी प्रकार के अर्थ तथा सिद्धियों की पूर्ति करता है, जिससे हर तरह की इच्छाओं की पूर्ति होती है तथा यश की प्राप्ति होती है। इसको पहनने से हर प्रकार के भोगों की प्राप्ति होती है तथा सभी मनोकामनायें भी पूरी होती हैं। तेरह मुख वाले रुद्राक्ष के देवता कामदेव हैं इसी कारण तेरह मुख वाला रुद्राक्ष काम तथा रस-रसायन एवं धातुओं तथा अर्थ को सिद्धि देने वाला माना गया है। इसको पहनने से इन्द्र तथा कामदेव भी खुश होकर सभी प्रकार की सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति करते हैं, समाज में मान-प्रतिष्ठा बढ़ती है, पद में उन्नति होती है। नवीन योजना में सफलता मिलती है। यह पहनने वाले को मनचाहे स्त्री-पुरुष को वशीकरण करने की शक्ति देता है, यह निःसन्तान तथा निर्धन को धन देने वाला है। इससे बन्धु-बान्धव की हत्या का पाप दूर होता है।
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चौदह मुख वाला रुद्राक्ष रुद्र की आँखों से प्रकट हुआ रुद्राक्ष माना जाता है। परम प्रभावशाली तथा थोड़े समय में ही शिवजी को खुश करने वाला यह चौदह मुख वाला रुद्राक्ष साक्षात देवमणि है। पुराणों में इसके विषय में कहा गया है कि यह चौदह विद्या, चौदह मनु, चौदह लोक, चौदह इंद्र का साक्षात् देव स्वरूप है। चौदह मुख वाले रुद्राक्ष को वृक्ष से उत्पन्न सर्वदेवमय, विशिष्ट व दुर्लभ रुद्राक्ष माना जाता है। यह दुर्लभ होने के साथ-साथ बहुत ही उपयोगी भी है। चौदह मुख वाले रुद्राक्ष में हनुमान जी की भी सम्पूर्ण शक्ति निहित रहती है। इसके असर से व्यक्ति सभी तरह के संकटों से मुक्त रहता है। हानि, दुर्घटना, रोग एवं चिन्ता से मुक्त रखकर साधक को सुरक्षा-समृद्धि देना इसका विशेष गुण है। चौदह मुख वाले रुद्राक्ष का महत्व इसलिये भी अधिक है, क्योंकि भगवान शिव स्वयं चौदह मुख वाला रुद्राक्ष धारण किया करते थे, इसीलिये चौदह मुख वाला रुद्राक्ष ही एकमात्र ऐसा रुद्राक्ष है जिसका एक दाना धारण करने से ही मनुष्य खुद साक्षात् शिव स्वरूप हो जाता है। पौराणिक ग्रन्थों की मान्यता के अनुसार एक चौदह मुख वाला रुद्राक्ष धारण करने से मनुष्य देवताओं से पूजित होकर सीधे स्वर्ग जाता है। चौदह मुख वाले रुद्राक्ष की शक्तियाँ अपार हैं।
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प्राकृतिक रूप से परस्पर जुड़े दो रुद्राक्षों को गौरी-शंकर रुद्राक्ष कहा जाता है। गौरी-शंकर रुद्राक्ष को भगवान शिव और माता गौरी का रूप माना जाता है इसलिये इसका नाम गौरी शंकर रुद्राक्ष पड़ा है। यह रुद्राक्ष एक मुख वाला तथा चौदह मुख वाले की तरह बहुत ही दुर्लभऔर विशिष्ट रुद्राक्ष होता है। इसमें भगवान शंकर का वरदान और माँ पार्वती की दिव्य शक्तियाँ निहित होती हैं। इसको पहनने से भगवान शंकर और माता पार्वती दोनों की समान रूप से खुश होते हैं और अनेक प्रकार के वरदान और शक्तियाँ धारणकर्ता को प्राप्त होते हैं। माता पार्वती हमेशा ही भगवान शंकर को मनुष्यों को वरदान देने को प्रेरित करती रहती हैं। यह रुद्राक्ष मानव को हर तरह के रुद्राक्ष से होने वाले लाभ को अकेले ही दिलवाता है, जो व्यक्ति एक मुख वाला अथवा चौदह मुख वाला रुद्राक्ष पहनना चाहते हों और पहन नहीं सकते हों उन्हें गौरी शंकर जरूर ही धारण करना चाहिये, क्योंकि एक मुख वाले और चौदह मुख वाले के समान ही यह रुद्राक्ष भी हर तरह की सिद्धियों का दाता है। यह अपने आप में विशिष्ट रुद्राक्ष है। इस रुद्राक्ष को पहनने के लिये सोने अथवा चाँदी में मढ़वा लेना श्रेष्ठ है।
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गणेश रुद्राक्ष में एक धारी सूँड की तरह अलग से उठी होती है। जिस प्रकार से भगवान गणेश की सूंड है उसी तरह इसकी भी सूंड के कारण इसे गणेश रुद्राक्ष कहते हैं। इसको पहनने से गणेश भगवान बहुत ही खुश होते हैं। भगवान गणेश ज्ञान और रिद्धि-सिद्धि के दाता हैं, इसलिये इसको पहनने से भी ज्ञान और रिद्धि-सिद्धि प्राप्त होती है। गणेश रुद्राक्ष भगवान गणेश के उपासकों हेतु अति उत्तम है।